सीपीएम की क्रांति

सीपीएम की क्रांति
हम एक लोकतंत्र में रह रहे हैं! 14 मार्च को हुई घटना और उसके बाद सीपीएम के बंद के दौरान गायब हुए दो सौ लोगों का अब तक कोई अता-पता नहीं है्. हां। कुछ लाशें हैं जो इलाके में इस हालत में पायी गयी हैं. क्या हम बता सकते हैं कि इन्होंने किस बात की कीमत चुकायी? क्या हम इसको लेकर आश्वस्त रह सकते हं कि हमें भी कभी ऐसी ही कीमत नहीं चुकानी पड़ेगी?

Thursday, March 22, 2007

भू-अधिग्रहण पर किसानों की लामबंदी


मेधा पाटकर

पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में किसानों पर हुई पुलिस फ़ायरिंग के विरोध में देश भर से आए किसानों ने मेधा पाटकर की अगुआई में दिल्ली के जंतर-मंतर पर अपनी आवाज़ बुलंद की.

इस मौके पर किसानों को संबोधित करते हुए सामाजिक कार्यकर्त्ता मेधा पाटकर राजनेताओं को संदेश देने से नहीं चूकीं.

मेधा ने कहा, "कांग्रेस और वामपंथियों को यह समझना चाहिए कि उनकी पूरी सत्ता इस देश के किसानों के बल बूते ही उनको मिलती है."

ग़ौरतलब है कि पिछले हफ़्ते इंडोनेशियाई सलीम समूह के प्रस्तावित विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईज़ेड) के लिए नंदीग्राम में भू-अधिग्रहण का विरोध कर रहे लोगों पर पुलिस ने फ़ायरिंग की थी जिसमें 14 लोग मारे गए थे.

जंतर-मंतर पर इकट्ठा हुए किसानों ने नंदीग्राम के लोगों के प्रति समर्थन जताया और एसईज़ेड को महज एक धोखा करार दिया.

भारतीय किसान यूनियन के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष यदुवीर सिंह ने कहा, " नंदीग्राम में जो कुछ हुआ उसकी निंदा करने के लिए और मारे गए किसानों को श्रद्धांजलि देने के लिए हम यहाँ इकट्ठा हुए हैं. एसईजेड एक धोखा है. किसानों की उपजाऊ ज़मीन औने-पौने दाम पर छीन कर पूँजीपतियों के लाभ के लिए दिया जा रहा है."

उन्होंने सरकार से एसईज़ेड नीति को वापस लेने की माँग की.

अधिकारों की लड़ाई

नंदीग्राम मुद्दे से आगे भी किसानों ने कई ज्वलंत समस्याओं पर अपनी मांगें रखीं.

शेतकारी संगठन, कर्नाटक राज्य रैयत संघ, किसान पंचायत जैसे संगठनों के कार्यकर्त्ता और आम किसान अपनी मांगे लेकर शायद इसलिए दिल्ली आए कि यहाँ से सरकार तक उनकी आवाज़ पहुँच पाएगी.

हम औद्योगीकरण के ख़िलाफ नहीं हैं. लेकिन औद्योगीकरण का यह मतलब नहीं है कि आप किसानों को बर्बाद करके पूँजीपतियों को अवसर मुहैया कराएँ जिसके माध्यम से वे अपनी पूँजी को हज़ार गुना बढ़ा सकें.
यदुवीर सिंह

किसान विश्व व्यापार संगठन के दूसरे दौर की बातचीत से कृषि को बाहर रखने की माँग कर रहे थे. साथ ही वे बीटी कॉटन और दूसरे जैव परिवर्द्धित बीजों पर रोक, भारत-अमरीका कृषि समझौता रद्द करना, टिकाऊ खेती को प्रोत्साहन दिए जाने जैसी माँगें लेकर भी पहुँचे थे.

पंजाब से आए भारतीय किसान यूनियन नेता सरदार अजमेर सिंह लाखोवाल ने लाखों किसानों की माँग को सीधे शब्दों में रखते हुए कहा, " हमारी माँग यह है कि जो हम किसान पैदा करते हैं चाहे वो गेहूँ हो, दाल हो या तेल के बीज हों उसका भाव या न्यूनतम समर्थन मूल्य थोक मूल्य सूचकांक के हिसाब से ही तय की जाएँ."

लाखोवाल की शिकायत थी कि किसानों का गेहूँ तो सात रुपए प्रति किलो लिया जाता है लेकिन ग़रीब को चौदह रुपए किलो बेचा जाता है. जो गेहूँ ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से मँगाया जाता है वह 1150 रुपए प्रति क्विंटल लिया जाता है.

छोटे-छोटे गाँवों से लोकतंत्र के मुख्यालय यानी दिल्ली पहुँचे कुछ किसान हैरान परेशान दिखे तो कुछ बड़े शहरों के ताम-झाम से सकपकाए भी दिखे.

गृह उद्योगों से जुड़ी महिलाएँ
गृह उद्योगों से जुड़ी महिलाओं द्वारा अपनी कला को आजीविका से जोड़ने का प्रयास.

किसान संगठनों के अलावा विस्थापित लोगों की आवाज़ बने कई गैर-सरकारी संगठन भी जुटे थे और उनकी पहल थी कि गृह-उद्योगों में लगे किसान अपनी कला भी दिखाएँ और अपनी आजीविका भी कमाएँ.

'सखी सहेली' संगठन की एक कार्यकर्त्ता का कहना था कि उनकी संस्था महिलाओं द्वारा घर में बनाई जाने वाली चीजों को बेचने का प्रयास करती है.

इन लोगों को आशा है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इनसे मिलकर इनकी तक़लीफें दूर करने का प्रयास करने की कोशिश करेंगे और किसानों की हालत सुधारने की नीतियाँ लाएँगे ताकि किसान आत्महत्या करने पर मजबूर न हों.

किसानों ने चेतावनी दी कि यदि ये आश्वासन उन्हें नहीं मिला तो वे नई आर्थिक नीति के ख़िलाफ एक लंबी मुहिम के लिए तैयार रहेंगे और अपने फावड़े और हल की बजाए पोस्टर और बैनर उठाए सरकार तक अपनी आवाज़ पहुँचाएंगे.

बीबीसी से साभार

No comments:

नंदीग्राम पर नयी फ़िल्म

यह फ़िल्म 14 मार्च की घटनाओं के सूक्ष्म विवरण के साथ आयी है.

देखें : नव उदारवाद का नया चेहरा बजरिये नंदीग्राम

देखें : विकास के नाम पर लोगों के उजड़ने की कहानी

उन्होंने मेरे पिता को टुकडों में काट डाला

देखें : न हन्यते

नंदीग्राम में 100 से ज्यादा लोग मारे गये हैं, 200 अब भी लापता हैं. वहां महिलाओं के साथ सीपीएम के कैडरों ने बलात्कार किया. बच्चों तक को नहीं छोड़ा गया है. सीपीएम की इस क्रूरता और निर्लज्जता का विरोध होना चाहिए. हमें नंदीग्राम, सिंगूर और हर उस जगह के किसानों के आंदोलन का समर्थन करना चाहिए, जो अपनी जमीन बचाने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. यह दस्तावेज़ी फ़िल्म किसानों के इसी संघर्ष के बारे में है. यह फ़िल्म नंदीग्राम के ताज़ा नरसंहार से पहले बनायी गयी थी.

नंदीग्राम में जनसंहार के बाद के द्श्‍य

यह फिल्‍म पुलिस द्वारा नंदीग्राम में बर्बर तरीके से की गयी हत्‍याओं एवं उनकी भयावहता व बर्बरता के बारे में है. इसके कई दृ़श्‍य विचलित कर देनेवाले हैं.

नंदीग्राम प्रतिरोध्‍

नंदीग्राम में सरकारी आतंक

देखें : माकपा की गुंडागर्दी

नंदीग्राम में सीपीएम सरकार की पुलिस ने जो बर्बर कार्रवाई की, वह अब खुल कर सामने आने लगी है. यह फ़िल्म उसी बर्बरता के बारे में है. इसके कई दृश्य आपको विचलित कर सकते हैं. आप इसे तभी देखें जब आप वीभत्स दृश्य देख सकने की क्षमता रखते हों. हम खुद शर्मिंदा हैं कि हमें ऐसे दृश्य आपको दिखाने पड़ रहे हैं, पर ये आज की हकीकत हैं. इनसे कैसे मुंह मोडा़ जा सकता है?