इस मौके पर किसानों को संबोधित करते हुए सामाजिक कार्यकर्त्ता मेधा पाटकर राजनेताओं को संदेश देने से नहीं चूकीं.
मेधा ने कहा, "कांग्रेस और वामपंथियों को यह समझना चाहिए कि उनकी पूरी सत्ता इस देश के किसानों के बल बूते ही उनको मिलती है."
ग़ौरतलब है कि पिछले हफ़्ते इंडोनेशियाई सलीम समूह के प्रस्तावित विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईज़ेड) के लिए नंदीग्राम में भू-अधिग्रहण का विरोध कर रहे लोगों पर पुलिस ने फ़ायरिंग की थी जिसमें 14 लोग मारे गए थे.
जंतर-मंतर पर इकट्ठा हुए किसानों ने नंदीग्राम के लोगों के प्रति समर्थन जताया और एसईज़ेड को महज एक धोखा करार दिया.
भारतीय किसान यूनियन के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष यदुवीर सिंह ने कहा, " नंदीग्राम में जो कुछ हुआ उसकी निंदा करने के लिए और मारे गए किसानों को श्रद्धांजलि देने के लिए हम यहाँ इकट्ठा हुए हैं. एसईजेड एक धोखा है. किसानों की उपजाऊ ज़मीन औने-पौने दाम पर छीन कर पूँजीपतियों के लाभ के लिए दिया जा रहा है."
उन्होंने सरकार से एसईज़ेड नीति को वापस लेने की माँग की.
अधिकारों की लड़ाई
नंदीग्राम मुद्दे से आगे भी किसानों ने कई ज्वलंत समस्याओं पर अपनी मांगें रखीं.
शेतकारी संगठन, कर्नाटक राज्य रैयत संघ, किसान पंचायत जैसे संगठनों के कार्यकर्त्ता और आम किसान अपनी मांगे लेकर शायद इसलिए दिल्ली आए कि यहाँ से सरकार तक उनकी आवाज़ पहुँच पाएगी.
हम औद्योगीकरण के ख़िलाफ नहीं हैं. लेकिन औद्योगीकरण का यह मतलब नहीं है कि आप किसानों को बर्बाद करके पूँजीपतियों को अवसर मुहैया कराएँ जिसके माध्यम से वे अपनी पूँजी को हज़ार गुना बढ़ा सकें. |
किसान विश्व व्यापार संगठन के दूसरे दौर की बातचीत से कृषि को बाहर रखने की माँग कर रहे थे. साथ ही वे बीटी कॉटन और दूसरे जैव परिवर्द्धित बीजों पर रोक, भारत-अमरीका कृषि समझौता रद्द करना, टिकाऊ खेती को प्रोत्साहन दिए जाने जैसी माँगें लेकर भी पहुँचे थे.
पंजाब से आए भारतीय किसान यूनियन नेता सरदार अजमेर सिंह लाखोवाल ने लाखों किसानों की माँग को सीधे शब्दों में रखते हुए कहा, " हमारी माँग यह है कि जो हम किसान पैदा करते हैं चाहे वो गेहूँ हो, दाल हो या तेल के बीज हों उसका भाव या न्यूनतम समर्थन मूल्य थोक मूल्य सूचकांक के हिसाब से ही तय की जाएँ."
लाखोवाल की शिकायत थी कि किसानों का गेहूँ तो सात रुपए प्रति किलो लिया जाता है लेकिन ग़रीब को चौदह रुपए किलो बेचा जाता है. जो गेहूँ ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से मँगाया जाता है वह 1150 रुपए प्रति क्विंटल लिया जाता है.
छोटे-छोटे गाँवों से लोकतंत्र के मुख्यालय यानी दिल्ली पहुँचे कुछ किसान हैरान परेशान दिखे तो कुछ बड़े शहरों के ताम-झाम से सकपकाए भी दिखे.
गृह उद्योगों से जुड़ी महिलाओं द्वारा अपनी कला को आजीविका से जोड़ने का प्रयास. |
किसान संगठनों के अलावा विस्थापित लोगों की आवाज़ बने कई गैर-सरकारी संगठन भी जुटे थे और उनकी पहल थी कि गृह-उद्योगों में लगे किसान अपनी कला भी दिखाएँ और अपनी आजीविका भी कमाएँ.
'सखी सहेली' संगठन की एक कार्यकर्त्ता का कहना था कि उनकी संस्था महिलाओं द्वारा घर में बनाई जाने वाली चीजों को बेचने का प्रयास करती है.
इन लोगों को आशा है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इनसे मिलकर इनकी तक़लीफें दूर करने का प्रयास करने की कोशिश करेंगे और किसानों की हालत सुधारने की नीतियाँ लाएँगे ताकि किसान आत्महत्या करने पर मजबूर न हों.
किसानों ने चेतावनी दी कि यदि ये आश्वासन उन्हें नहीं मिला तो वे नई आर्थिक नीति के ख़िलाफ एक लंबी मुहिम के लिए तैयार रहेंगे और अपने फावड़े और हल की बजाए पोस्टर और बैनर उठाए सरकार तक अपनी आवाज़ पहुँचाएंगे.
बीबीसी से साभार
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