एसईजेड के क़ानून अलग बनाए गए हैं और आम श्रम क़ानून वहाँ लागू नहीं होंगे |
क़ानून की धारा 49 के तहत जितने भी केन्द्रीय कानून हैं वे इससे अलग रहेंगे, लेकिन ये बिल्कुल असंवैधानिक प्रावधान है.
कानून बनाने का काम संसद का है और संसद अपनी जिम्मेदारी सरकार को नहीं दे सकती.
एसईजेड बनाने का काम कॉरपोरेट घराने करेंगे. इनका प्रबंधन पूरी तरह से निजी कंपनियों के हाथों में होगा.
इस मायने में ये और जितने लोग भी वहाँ काम करेंगे उनकी देखरेख की जिम्मेदारी उन्हीं की होगी.
लेकिन अभी ये स्पष्ट नहीं है कि वे अपने अधिकारों की रक्षा किस कानून के तहत करेंगे.
सरकार को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी हाल में श्रमिकों के हितों के नुकसान न पहुँचे और उनका शोषण न हो |
कई बातें की जा रही हैं. करों में छूट की बात है, श्रम क़ानून लागू नहीं करने की भी चर्चा है.
हायर एंड फायर
इन क़ानूनों का एसईजेड में काम करने वाले श्रमिकों पर सीधा नकारात्मक असर ये पड़ेगा कि वहाँ पर हायर एँड फायर की नीति होगी.
मज़दूर ठेके पर होंगे. चूँकि औद्योगिक विवाद अधिनियम, फैक्टरी काऩून के कई नियम वहाँ लागू नहीं होंगे.
यानी श्रमिकों की सुरक्षा के जितने क़ानून देश में फिलहाल मौजूद हैं, ये वहाँ लागू नहीं होंगे.
सरकार को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी हाल में श्रमिकों के हितों के नुकसान न पहुँचे और उनका शोषण न हो.
पर्यावरण
जहाँ तक पर्यावरण का सवाल है तो अभी एसईजेड के लिए ये भी स्पष्ट नहीं है कि इन्हें पर्यावरण के क़ानूनों के दायरे से बाहर रखा जाएगा कि नहीं.
कहा तो ये भी जा रहा है कि इन्हें राज्य सरकार के अधीन लाया जाएगा. यानी कि पर्यावरण मंत्रालय से इन्हें मंजूरी लेने की ज़रूरत नहीं होगी.
एसईजेड क़ानून में खास ऐसी बातें नहीं हैं जिनसे भविष्य में राज्य और केन्द्र के बीच टकराव जैसी गुंजाइश होगी |
पर्यावरण के मसले का जितना विकेन्द्रीकरण होगा, उतनी ही उसकी अनदेखी होगी.
टाटानगर जमशेदपुर के अनुभवों को देखते हुए सवाल उठ रहा है कि एसईजेड मे रहने वाले लोगों को बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकार मिलेंगे कि नहीं.
ये सही है कि 74वें संविधान संशोधन के क़ानून एसईजेड में लागू नहीं होंगे और एसईजेड की सारी योजनाएं इसका लाइसेंसधारी ही बनाएगा. लेकिन एसईजेड में काम करने वाले हज़ारों लोगों के उनके मूलभूत लोकतांत्रिक अधिकार तो मिलने ही चाहिए.
हालाँकि एसईजेड क़ानून में खास ऐसी बातें नहीं हैं जिनसे भविष्य में राज्य और केन्द्र के बीच टकराव जैसी गुंजाइश होगी.
लेकिन आम क़ानून से उन्हें मुक्त करने का राज्य सरकारों को दिया गया अधिकार ही सबसे ख़तरनाक है.
(आलोक कुमार के साथ बातचीत पर आधारित)
बीबीसी से साभार
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