एनके सिंह का कहना है कि चीन के मॉडल की नकल ठीक नहीं है |
इसलिए चीन में ये विवाद नहीं है कि निजी क्षेत्र को बहुत लाभ दिया जा रहा है. इसके अलावा चीन ने भूमि अधिग्रहण के लिए जो प्रशासनिक नीति बनाई है उसे लेकर भी कोई भी विवाद नहीं है.
इसके उलट, भारत में ज़मीन अधिग्रहण के विवाद अहम हैं. ज़रूरी है कि उपजाऊ ज़मीन का अधिग्रहण नहीं किया जाना चाहिए और इसके लिए बंजर और अनुपयुक्त ज़मीन का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
इसके अलावा जिन किसानों की ज़मीन अधिग्रहित की गई हैं, उन्हें एसईजेड में भागीदारी दी जानी चाहिए यानी उन्हें कंपनी में हिस्सेदारी दी जानी चाहिए.
अलग परिस्थितियाँ
भारत में 1.1 अरब की आबादी है यानी यहाँ ज़मीन पर इतना दबाव है कि दुनिया में जापान और चीन को छोड़कर शायद इतना दबाव और कहीं नहीं है.
इसलिए भारत को ऐसे क़ानून बनाने चाहिए जिससे आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक दायित्वों का निर्वहन भी सुनिश्चत हो.
ये बात सही है कि चीन के एसईजेड का आकार बहुत बड़ा है और भारत से बहुत भिन्न है.
भारत को ऐसे क़ानून बनाने चाहिए जिससे हम आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक दायित्वों का निर्वहन भी सुनिश्चत हो. |
इसके अलावा वहाँ की सरकार ने आधारभूत ढाँचे के विकास के लिए बहुत सस्ती ब्याज़ दर पर बैंकों से ऋण लिया है.
भारत में अब तक लगभग 170 एसईजेड स्वीकृत हो चुके हैं और यहां आधारभूत ढाँचे के विकास की ज़िम्मेदारी निजी क्षेत्र को दी गई है.
क्यों विफल?
ये सही है कि चीन से भी पहले भारत में कांडला में एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग ज़ोन (ईपीजेड) खुला था, लेकिन वहाँ हमें अधिक सफलता इसलिए नहीं मिली क्योंकि आधारभूत ढाँचा कमजोर था. विभिन्न विभागों के बीच तालमेल नहीं था और कर काफी अधिक थे.
एसईजेड की कार्यप्रणाली आर्थिक विकास के लिए निश्चित रूप से फायदेमंद है. लेकिन ज़रूरी है कि इसमें विभिन्न वर्गों खासकर किसानों को भागीदार बनाया जाए.
ये सही है कि एसईजेड की कार्यप्रणाली में हमने काफ़ी हद तक चीन के मॉडल की नकल की है.
एसईजेड की कार्यप्रणाली आर्थिक विकास के लिए निश्चित रूप से फायदेमंद है. लेकिन ज़रूरी है कि इसमें विभिन्न वर्गों खासकर किसानों को भागीदार बनाया जाना चाहिए |
लेकिन अगर विशेष आर्थिक क्षेत्र में भी राजस्व की में ख़ास छूट नहीं मिले या आधारभूत ढाँचा विकसित न हो तो एसईजेड का आकर्षण नहीं रह जाएगा.
लेकिन ध्यान रखना होगा कि करों में छूट किस हद तक दी जाए. राजस्व विभाग भी एसईजेड को दी जा रही टैक्स छूट को लेकर चिंतित है.
जहाँ तक क्षेत्रीय आर्थिक असंतुलन को दूर करने की बात है तो हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि ऐसे राज्यों में भूमि अधिग्रहण से बचा जाए, जहाँ आबादी पहले से ही घनी है.
मसलन झारखंड में बंजर या अनुपयुक्त ज़मीन बहुत है, जबकि इसके पड़ोसी राज्य बिहार में आबादी कहीं अधिक घनी है.
(आलोक कुमार के साथ बातचीत पर आधारित)
बीबीसी से साभार
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